देखने वाले देखते हैं, सब कुछ देखते हैं ये लोग   देख देख कुछ करते नहीं, जाने कहाँ से लगा ये रोग ।      गरीब देखा, पीड़ित देखा, देखे उनके खेत बंजर   फर्क उनको कुछ पड़ा नहीं, देख किसानों का ये मंजर   झूठ वादा, झूठे काम, किसानों के प्रति झूठा सम्मान   सब देख मंद मुस्काते हैं, चाहे फांद गला लटके किसान   हिन्दू देखा, मुस्लिम देखा, देखी जाने कितनी जाती   पर जिससे इंसान दिखें, ऐसी कला कहाँ उनको आती   देखने वाले देखते हैं, सब कुछ देखते हैं ये लोग   देख देख कुछ करते नहीं, जाने कहाँ से लगा ये रोग ।      घर में देखा, ऑफिस में देखा, देखा ओलंपिक्स में परचम लहराते   चाहे जितने हुनर उनके देखे, पर कसी फब्तियां आते जाते   कल के दुश्मन आज हैं भाई, गले पड़े भुला के सब लफड़े   लेकर ठेका आदर्शवाद का, नाप रहे दूजों के कपडे   अधरों पे बेशर्मी का पर्दा, जो पीड़ित है उसी की गलती   देख देख इन बड़बोलों को, दानवों की कमी कहाँ है खलती   देखने वाले देखते हैं, सब कुछ देखते हैं ये लोग   देख देख कुछ करते नहीं, जाने कहाँ से लगा ये रोग ।      सड़क नहीं, बिजली नहीं, जनता का पैसा, उनकी जेब   जहाँ देखो वहीँ ...
 
 
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